शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017
मारुती मज़दूर विवाद में निर्णय : न्याय या न्याय का ढकोसला
18 मार्च 2017 को दिए गए अपने निर्णय में, गुडगांव डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज RP Goel ने लगभग 5 साल से चल रहे मारुति मानेसर संबंधी केस ( State Vs. Ram Mehar Etc.) में निर्णय सुना दिया। निर्णय के तहत जज महोदय ने 148 आरोपियों में से 117 को बाइज्ज्ात बरी कर दिया गया। 13 आरोपियों को हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गयी, 4 आरोपियों को हिंसक प्रवेश (violent trespass) के जुर्म में 5 साल की जेल की सजा दी गयी तथा शेष 14 आरोपियों को गंभीर क्षति पहुँचाने का दोषी पाया गया, लेकिन चूंकि वे पहले से जेल में रहते हुए अपनी सजा काट चुके थे, इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया। 13 मज़दूर जिन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गयी है, उनमें से बारह मारुति मानेसर की यूनियन के पदाधिकारी सदस्य हैं (राम मेहर, संदीप ढिल्लों, रामविलास, सरबजीत सिंह, पवन कुमार, सोहन कुमार, प्रदीप कुमार, अजमेर सिंह, जियालाल, अमरजीत कपूर, धनराज भांबी, योगेश कुमार और प्रदीप गुज्जर) तथा तेरहवां आदमी जिया लाल है, जिसका 18 जुलाई 2012 की सुबह एक सुपरवाइजर के साथ विवाद हुआ था।
यूं तो 2006 में स्थापित मारुति की मानेसर फैक्ट्री में प्रशाशन और मज़दूरों के बीच विवाद जून 2011 से ही चल रहा था। विवाद का विषय पहले था स्वतंत्र यूनियन बनाने का अधिकार और 1 मार्च 2012 को यूनियन के रजिस्टर हो जाने के बाद 13 सूत्री मांगपत्र पर प्रशसन से यूनियन की बातचीत चल रही थी। मारुति में जारी ठेका प्रथा का अंत और ठेका मज़दूरों को नियमित करना यूनियन की मुख्य मांगों में से एक थी, लेकिन जो केस पिछले 4 साल से गुडगांव डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में चल रहा था उसके संबंध में मज़दूरों का कहना है कि 18 जुलाई 2012 की सुबह जियालाल नामक मज़दूर और एक सुपरवाइजर के बीच हुआ विवाद था। इसमें प्रशासन ने जियालाल को निलंबित कर दिया। यह सब उस समय हुआ, जबकि मज़दूर यूनियन कुछ पुराने मुद्दों के संबंध में प्रबंधन के साथ बैठक कर रहा था। जब निलंबन की खबरें यूनियन तक पहुंचीं तो उन्होंने मांग की कि निलंबन रद्द किया जाए। मज़दूरों के अनुसार, उस दिन परिसर में कंपनी ने कई बाउंसर (भाड़े पर बुलाए गए मारपीट करने वाले पहलवान) भी तैनात किए थे और बातचीत के वक्त प्रशासन ने पुलिस भी बुला ली थी। निलंबन को रद्द करने के सवाल पर प्रशासन के टालमटोल के कारण, तनाव बढ़ता गया। उसके बाद हुई हाथापाई में कुछ प्रशासन कर्मी और मज़दूरों को चोटें आईं। इस बीच कार्यालय में आग लग गयी और सांस घुटने से एक एचआर प्रबंधक अविनाश देव की दुःखद मृत्यु हो गयी। मज़दूरों के विवरण को तवज्जो न देते हुए न्यायालय ने प्रशासन के नज़रिए को ही आधार बनाकर सुनवाई की। सुनवाई का आधार बनी मारुति मानेसर के जनरल मैनेजर दीपक आनंद की शिकायत। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया कि 18 जुलाई 2012 सुबह जियालाल नामक मज़दूर ने सुपरवाइजर राम किशोर माझी से हाथपाई की। इसकी सुपरवाइजर द्वारा शिकायत करने पर प्रशासन ने जियालाल को अनुशासनहीनता के इल्जाम पर सस्पेंड कर दिया। यूनियन प्रशासन पर निलंबन वापसी का जोर दे रही थी और जब बातचीत से कोई नतीजा न निकला, तो शाम को तकरीबन 7 बजे 500/600 मज़दूर 'बेलचे' लेकर दफ्तर में घुस गए और प्रशासन के नुमाइंदों से मारपीट की। दफ्तर में आग लगा दी, इस आग में एचआर प्रबंधक अविनाश देव जलकर मर गया। मारुति मानेसर के मैनेजर ने अपनी शिकायत में 55 आदमियों के नाम लिखवाए और दोषी व्यक्तियों के खिलाफ न्याय संगत कार्रवाई की मांग की। दीपक आनंद की शिकायत के आधार पर FIR बनाते समय 213 लोगों क़ो दोषी करार दिया गया, जिसमें से 148 लोगों पर केस चला, बाकि 65 क़ो गिरफ्तार न किया जा सका।
इस केस में हुई कार्रवाई से स्पष्ट है की न्यायालय मज़दूरों को सख्त सजा देने को पहले से ही कटिबद्ध था। यह नीचे के तीन उदहारणों से स्पष्ट हो जाएगा।
सबसे पहले 148 आरोपियों में से 117 मज़दूरों का बाइज़्ज़त बरी हो जाना, इस बात का सबूत है कि केस बहुत ही कमजोर था। कोर्ट के कागज़ बताते हैं कि नितिन सारस्वत नामक मारुति का एक अफसर 19 जुलाई 2012 की रात में तीन बजे फैक्ट्री में आया और 89 लोगों की लिस्ट बनाकर उसने सुबह पुलिस को सौंपी। पुलिस ने सुबह उन लोगों को गिरफ्तार किया और बाद में दोपहर में चार मज़दूर ठेकेदारों से उनकी शिनाख्त कराई गयी और उन्हें आरोपी बनाया गया। कानून की ऐसी धज्जियां उड़ाने पर जज को भी कहना पड़ा " जांच कर रहे अफसरों ने इन लोगों को गिरफ्तार करके ... बिना किसी औचित्य के देश के कानून का उल्लंघन किया है।"
दूसरे, केस मारुति मानेसर के जनरल मैनेजर दीपक आनंद द्वारा लिखाई गयी FIR पर चला है। FIR में उन्होंने लिखवाया था कि वारदात के दिन शाम को करीब 7 बजे 500 /600 मज़दूर 'बेलचे' लेकर दफ्तर में घुस गए। वे एक वरिष्ठ अफसर हैं, इसलिए FIR लिखाते हुए उन्हें सभी जरूरी तथ्यों की जानकारी होने की उम्मीद की जा सकती है। गवाही के वक़्त उन्होंने बयान दिया कि मज़दूर door beams, shockers और लोहे की छड़ें लेकर दफ्तर में घुसे। बेलचों, door beams, shockers और लोहे की छड़ों से हमले के औजारों को बदलना आवश्यक था, क्योंकि यह साबित करना मुश्किल होता कि फैक्ट्री में 500/600 बेलचे क्यों रखे गए थे, जबकि कार में काम आने वाले सामान तो फैक्ट्री में होंगे ही।
जब बचाव पक्ष के वकील वृंदा ग्रोवर ने हमले के लिए इस्तेमाल में लाए गए साधनों में परिवर्तन का सवाल उठाते हुए दलील दी कि इस परिवर्तन से तो FIR झूठी साबित हो जाती है, तो जज साहब ने इस तर्क को ख़ारिज कर दिया। उनका कहना था कि FIR कोई विश्वकोष नहीं है और किसी मामले के हर विवरण का उल्लेख उसमें हो यह जरूरी नहीं है। कोई पूछे कि उन साधनों का विवरण जिससे हमला हुआ बताया गया है इतना गैर जरूरी भी तो नहीं माना जा सकता। यदि उसके बारे में ही स्पष्टता नहीं है तो FIR कितनी सच होगी। तीसरी बात, यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि आखिर फैक्ट्री के दफ्तर MI में आग किसने लगाई पुलिस यह नहीं साबित कर पाई कि आग कैसे लगी और किसने लगाई। सबूत के तौर पर केवल इंस्पेक्टर प्रकाश ने एक माचिस को पेश किया। लेकिन उसने माना कि उंगलियों के निशान या DNA जांच उसने नहीं कराई। जज गोयल ने भी यह स्वीकार किया कि माचिस की बरामदगी संदेह के घेरे में है, लेकिन उन्होंने यह जिम्मेदारी मज़दूरों पर डाली कि वे साबित करें कि आग किसने लगायी. यानी अगर मज़दूर यह साबित न कर पाए कि आग किसने लगाई तो यह माना जाएगा कि आग मज़दूरों ने ही लगायी है। फैसले में कहा गया कि "अमरजीत (एक आरोपी) और उनके सहयोगियों द्वारा स्पष्टीकरण के अभाव में यह मानना होगा कि वे ही थे जिन्होंने MI दफ्तर में आग लगाई."
इस प्रकार की और भी कई कमजोरियां केस के फैसले को पढ़ने से उजागर होती हैं। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि कुल मिलाकर यह फैसला कानून के आधार पर कम और शासक वर्ग की राजनीति से ज्यादा प्रेरित है। वर्तमान निज़ाम का मानना है की यदि मज़दूरों को सख्त सजा नहीं दी गई, तो देश में विदेशी पूंजी कैसे आएगी और वो विदेशी पूंजी के दम पर ही अपने राजकाज को चलाने का सपना देखते हैं। आमजन हितैषी आर्थिकी और राजनीति में इनका विश्वास नहीं है। यह पूछने पर कि उन्होंने दोषी कर्मचारियों के लिए मौत की सजा की मांग क्यों की। विशेष सरकारी अभियोजक अनुराग हुड्डा ने कहा, "हमारे औद्योगिक विकास में गिरावट आई है, एफडीआई सूख गया है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में मेक इन इंडिया के लिए उन्हें बुला रहे हैं, लेकिन ऐसी घटनाएं हमारी छवि पर दाग हैं।"
अब मारुति के मजदूरों के आंदोलन पर बात करते हैं। मारुति में होने वाले आंदोलन ने मज़दूर आंदोलन संबंधी कई स्थापित धारणाओं को तोड़ा है। यह तय है कि आने वाले समय में मारुति का यह आंदोलन औद्योगिक संबंधों की एक मानवीय अवधारणा को स्थापित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। सर्वप्रथम यह ध्यान देना दिलचस्प होगा कि मारुति की फैक्ट्री दुनिया की अत्याधुनिक तकनीक से चलने वाली फैक्ट्री है। दूसरे, आज दुनिया के पैमाने पर मारुति फैक्ट्री सबसे शोषणकारी औद्योगिक संबंधों का अग्रणी उदहारण है। तीसरे सभी बड़ी यूनियंस जैसे aituc, citu, hms, bms, intec आदि के समर्थन न देने के बावजूद तथा विदेशी पूंजी को देश की समस्याओं का रामबाण हल मानने वाली सभी बड़ी राजनीतिक पार्टियों के विरोध के बावजूद मारुति मज़दूर पिछले 6-7 साल से आंदोलन चला रहे हैं, जो उत्तरोत्तर मज़बूत हो रहा है। इस संदर्भ में यह भी ध्यान देने योग्य है कि बेशक यूनियन नेतृत्व परमानेंट मज़दूरों का है, पर उनके 13 सूत्री मांगपत्र में मारुति में जारी ठेका प्रथा का अंत और ठेका मज़दूरों को नियमित करना यूनियन की मुख्य मांगों में से एक है। यह भी गौरतलब है कि मारुति मैनेजमेंट को उसके पक्ष में गवाही देने के लिए एक भी मज़दूर नहीं मिला और आखरी बात न केवल देश में बल्कि दुनिया के पैमाने पर संघर्षरत मज़दूरों को व्यापक समर्थन मिला है। 4 अप्रैल 2017 को मारुति मज़दूरों के समर्थन में प्रतिवाद दिवस आयोजित किया गया। इस अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों और दुनिया के कई देश के मज़दूरों ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित की। विरोध प्रदर्शन किया, रैलियां निकालीं। यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एकजुटता कमजोर ही सही पर आज के समय में महत्वपूर्ण मिसाल है।
इस संघर्ष ने आपसी मज़दूर भाईचारे का भी अभूतपूर्व उदहारण एक लंबे समय के बाद पेश किया है। मारुति मानेसर के 13 मजदूरों को उम्रकैद की सजा में एक भाई संदीप ढिल्लों को अपनी बहन की शादी में जाने की अनुमति नहीं मिली। भाई की कमी दूर करने सैकड़ों भाई संदीप के घर पहुंचे और संदीप की अनुपस्थिति में भाई की जिम्मेदारी निभाई। 'मारुति सुजुकी प्रोविजनल कमेटी' की अगुवाई में सभी मारुति सुजुकी मजदूर संघ के मजदूरों ने और बेल्सोनिका, एफएमआई, होन्डा, हीरो, सनबीम, ओमैक्स, जीकेएन, डाईकिन, मुन्जाल किरीयु, सोना कोयो स्टेरिंग, कैरियर, एक्साइड, अरस्टी आदि यूनियनों से जुड़े मजदूर साथियों ने शादी में पहुंचकर परिवारजनो का हौसला बढ़ाया और साथ ही 8 लाख 38 हजार रुपये की आर्थिक मदद भी की। इस मदद ने जहां मानवता व भाईचारे का संदेश दिया है, वहीं जेल में बंद साथियों के मनोबल को भी बढ़ाया है और विश्वास दिलाया है कि उनके परिवार की जिम्मेदारी सब मजदूरों की है।
संपर्कः रवींद्र गोयल, ई मेल आईडीः ravi_goel2001@yahoo.com
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