डॉ. मिथिलेश दाँगी
इस्टर्न कोल लिमिटेड (इ.सी.एल.) का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक खदान है राजमहल खनन परियोजना ललमटिया। यह परियोजना झारखण्ड प्रदेश के गोडा जिला के बोआरीजोर प्रखण्ड में स्थित है। कुछ लोग बताते हैं कि यह परियोजना एशिया की सबसे बड़ी परियोजना है। इस परियोजना का कोयला एन.टी.पी.सी. के फरक्का तथा कहलगांव बिजली उत्पादन केन्द्रों को दी जाती है।
जैसा कि सभी जानते हैं इस तरह की खनन परियोजनाओं की जब शुरुआत की जाती है तब विकास की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। लोग उसी विकास के झांसे तथा मालिक से नौकर बनकर अपने आने वाली संतानों के उज्ज्वल भविष्य का दिया स्वप्न देखकर अपनी पूर्वजों की थाती को बेरहम परियोजनाओं के हवाले कर देते हैं। ज्यों-ज्यों समय गुजरता जाता है त्यों-त्यों इन जमीन मालिकों को अपने इस कुकृत्य पर रोना आता है। कहते हैं न ‘‘अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत।’’ ऐसे लालची लोग अपने तथा कथित उदार कृत्यों के कारण देश के करोड़ों विस्थापितों में शामिल होकर गुमनामी के अंधेरे में गुम हो चुके हैं तो कुछ लोग आज भी लालच के चश्मे के कारण आंखों से देखकर भी मक्खी निगल रहे हैं।
राजमहल परियोजना में भी प्रारम्भिक दौर के बड़े-बड़े वायदों के साथ लोगों की जमीने ली गई। लोग ने बड़े सपनों के कारण अपनी स्थायी संपत्ति से हाथ धो बैठे। हांलाकि प्रारम्भ में इस परियोजना ने कुछ लोगों को पुनर्वासित भी किया तथा कुछ मुट्ठीभर चालाक एवं पहुंच वालों को नौकर भी बनाया परन्तु 1990 के बाद विश्व के कॉरपोरेट जगत में कुछ घिनौने परिवर्तन हुए वह था ‘‘सामाजिक सरोकारों के स्थान पर सिर्फ लाभ की ललक’’। इस परिवर्तन ने उत्पादन को बेतहाशा बढ़ाने
की सोची और अधिक लाभ के वशीभूत होकर सारे कार्यों को निजी कम्पनियों के हवाले कर दिया, नतीजतन नयी बहालियाँ
रूक गईं। सामाजिक कार्यों के नाम पर लीपापोती शुरू हो गई। जमीन दाताओं को नौकरी के नाम पर किसान से ठेका
मजदूर बना दिया गया और फिर 5-8 साल के भीतर उन्हें नगरों में दैनिक मजदूरी करने पर विवश कर दिया। कम्पनी द्वारा
नौकरी, घर, पानी, बिजली, स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपलब्ध कराने का वादा हमारे राजनेताओं के वायदों की तरह हवा हो गए। ललमटिया परियोजना के खनन पीट 100-200 मीटर की दूरी पर बसा है लोहण्डिया बाजार। यहाँ अधिकांश लोग व्यापारी वर्ग के हैं। अतः वे चल सम्पत्ति के प्रति ज्यादा आसक्ति रखते हैं। इन्हें अपने पुरखों द्वारा प्रदत्त अचल सम्पत्ति में ‘अ’ उपसर्ग इनके व्यवसाय की वृद्धि में नकारात्मक दिखाई दिया अतः उसे विकास हेतु नष्ट करने की ठानी और ललमटिया परियोजना में जाकर अंचल को ‘चल’ में बदल दिया। इस परिवर्तन ने कम्पनी के अधिकारियों को गाँवों में विरोध एवं लोगों के संघर्ष के कारण भीगी बिल्ली बने थे आज बब्बर शेर बना दिया। अब कम्पनी ने इस गाँव के कुछ लालची युवकों को ग्राम विकास समिति की सलाह दी और यह लालच दिया कि सी.एस.आर. (सामाजिक दायित्व निर्वहन) का कार्य उनके माध्यम से ही कराया जाएगा। लड़के लालच के दलदल में फंस गए। कम्पनी ने गाँव के बीच से जाने वाली सड़क को बन्द कर दिया
तथा गाँव के बाहर से उसे तीनों ओर से घेरते हुए कच्ची सड़क बना दिया जिस पर चौबीसों घण्टे यातायात के वाहनों का आवागमन जारी रहता है। इधर इस गाँव की महिलाओं को शौच के लिए परेशानी होनी शुरू हो गई क्योंकि ना तो कम्पनी ने इतने करीब गाँव में लोगों के लिए न्यूनतम आवश्यक शौचालय की व्यवस्था की और ना ही कम्पनियों के माध्यम से विकास का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारों ने इस सम्बन्ध में सोचा। इस तत्कालिक कारण के अलावे कम्पनी ने जमीन लेने के समय जितने भी वायदे किए थे उनमें से एक भी पूरा नहीं किया गया। कम्पनी के इस वादा खिलाफी के खिलाफ गाँवों के कुछ युवक तथा महिलाओं ने कम्पनी के कार्यों का खिलाफत करने का मन बना लिया। संघर्ष के नए पौधों को सींचने का कार्य आजादी बचाओ आन्दोलन के संघर्ष वीरो ने किया। अब वे संघर्ष में परिपक्व हो गए हैं। इन लोगों ने इ.सी.एल. एवं उनकी
अनुषंगी कम्पनियों के कार्यों को पहली बार जून माह में 15 दिनों के लिए रोक दिया। कम्पनी के लोग आन्दोलनकारियों से वार्ता करने को तैयार हुए। जिला प्रशासन की मध्यस्थता में कम्पनी के अधिकारियों एवं ग्रामीणों के बीच वार्ता हुई। ग्रामीणों ने कम्पनी को पूर्व में किए गए सभी वायदों को याद दिलाया और पुनः लिखित माँग पत्र सौंपा। कम्पनी ने उन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए 15 दिन का समय लिया। परन्तु जैसा आज तक होता आया है। जिला प्रशासन ने कम्पनी के साथ मिलकर अपने वायदे के अनुसार काम करने के स्थान पर नेतृत्व कर रहे लोगों को झूठे मुकदमें में फंसा दिया।
इस्टर्न कोल लिमिटेड (इ.सी.एल.) का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक खदान है राजमहल खनन परियोजना ललमटिया। यह परियोजना झारखण्ड प्रदेश के गोडा जिला के बोआरीजोर प्रखण्ड में स्थित है। कुछ लोग बताते हैं कि यह परियोजना एशिया की सबसे बड़ी परियोजना है। इस परियोजना का कोयला एन.टी.पी.सी. के फरक्का तथा कहलगांव बिजली उत्पादन केन्द्रों को दी जाती है।
जैसा कि सभी जानते हैं इस तरह की खनन परियोजनाओं की जब शुरुआत की जाती है तब विकास की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं। लोग उसी विकास के झांसे तथा मालिक से नौकर बनकर अपने आने वाली संतानों के उज्ज्वल भविष्य का दिया स्वप्न देखकर अपनी पूर्वजों की थाती को बेरहम परियोजनाओं के हवाले कर देते हैं। ज्यों-ज्यों समय गुजरता जाता है त्यों-त्यों इन जमीन मालिकों को अपने इस कुकृत्य पर रोना आता है। कहते हैं न ‘‘अब पछताए होत क्या जब चिडि़या चुग गई खेत।’’ ऐसे लालची लोग अपने तथा कथित उदार कृत्यों के कारण देश के करोड़ों विस्थापितों में शामिल होकर गुमनामी के अंधेरे में गुम हो चुके हैं तो कुछ लोग आज भी लालच के चश्मे के कारण आंखों से देखकर भी मक्खी निगल रहे हैं।
राजमहल परियोजना में भी प्रारम्भिक दौर के बड़े-बड़े वायदों के साथ लोगों की जमीने ली गई। लोग ने बड़े सपनों के कारण अपनी स्थायी संपत्ति से हाथ धो बैठे। हांलाकि प्रारम्भ में इस परियोजना ने कुछ लोगों को पुनर्वासित भी किया तथा कुछ मुट्ठीभर चालाक एवं पहुंच वालों को नौकर भी बनाया परन्तु 1990 के बाद विश्व के कॉरपोरेट जगत में कुछ घिनौने परिवर्तन हुए वह था ‘‘सामाजिक सरोकारों के स्थान पर सिर्फ लाभ की ललक’’। इस परिवर्तन ने उत्पादन को बेतहाशा बढ़ाने
की सोची और अधिक लाभ के वशीभूत होकर सारे कार्यों को निजी कम्पनियों के हवाले कर दिया, नतीजतन नयी बहालियाँ
रूक गईं। सामाजिक कार्यों के नाम पर लीपापोती शुरू हो गई। जमीन दाताओं को नौकरी के नाम पर किसान से ठेका
मजदूर बना दिया गया और फिर 5-8 साल के भीतर उन्हें नगरों में दैनिक मजदूरी करने पर विवश कर दिया। कम्पनी द्वारा
नौकरी, घर, पानी, बिजली, स्वास्थ्य एवं शिक्षा उपलब्ध कराने का वादा हमारे राजनेताओं के वायदों की तरह हवा हो गए। ललमटिया परियोजना के खनन पीट 100-200 मीटर की दूरी पर बसा है लोहण्डिया बाजार। यहाँ अधिकांश लोग व्यापारी वर्ग के हैं। अतः वे चल सम्पत्ति के प्रति ज्यादा आसक्ति रखते हैं। इन्हें अपने पुरखों द्वारा प्रदत्त अचल सम्पत्ति में ‘अ’ उपसर्ग इनके व्यवसाय की वृद्धि में नकारात्मक दिखाई दिया अतः उसे विकास हेतु नष्ट करने की ठानी और ललमटिया परियोजना में जाकर अंचल को ‘चल’ में बदल दिया। इस परिवर्तन ने कम्पनी के अधिकारियों को गाँवों में विरोध एवं लोगों के संघर्ष के कारण भीगी बिल्ली बने थे आज बब्बर शेर बना दिया। अब कम्पनी ने इस गाँव के कुछ लालची युवकों को ग्राम विकास समिति की सलाह दी और यह लालच दिया कि सी.एस.आर. (सामाजिक दायित्व निर्वहन) का कार्य उनके माध्यम से ही कराया जाएगा। लड़के लालच के दलदल में फंस गए। कम्पनी ने गाँव के बीच से जाने वाली सड़क को बन्द कर दिया
तथा गाँव के बाहर से उसे तीनों ओर से घेरते हुए कच्ची सड़क बना दिया जिस पर चौबीसों घण्टे यातायात के वाहनों का आवागमन जारी रहता है। इधर इस गाँव की महिलाओं को शौच के लिए परेशानी होनी शुरू हो गई क्योंकि ना तो कम्पनी ने इतने करीब गाँव में लोगों के लिए न्यूनतम आवश्यक शौचालय की व्यवस्था की और ना ही कम्पनियों के माध्यम से विकास का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारों ने इस सम्बन्ध में सोचा। इस तत्कालिक कारण के अलावे कम्पनी ने जमीन लेने के समय जितने भी वायदे किए थे उनमें से एक भी पूरा नहीं किया गया। कम्पनी के इस वादा खिलाफी के खिलाफ गाँवों के कुछ युवक तथा महिलाओं ने कम्पनी के कार्यों का खिलाफत करने का मन बना लिया। संघर्ष के नए पौधों को सींचने का कार्य आजादी बचाओ आन्दोलन के संघर्ष वीरो ने किया। अब वे संघर्ष में परिपक्व हो गए हैं। इन लोगों ने इ.सी.एल. एवं उनकी
अनुषंगी कम्पनियों के कार्यों को पहली बार जून माह में 15 दिनों के लिए रोक दिया। कम्पनी के लोग आन्दोलनकारियों से वार्ता करने को तैयार हुए। जिला प्रशासन की मध्यस्थता में कम्पनी के अधिकारियों एवं ग्रामीणों के बीच वार्ता हुई। ग्रामीणों ने कम्पनी को पूर्व में किए गए सभी वायदों को याद दिलाया और पुनः लिखित माँग पत्र सौंपा। कम्पनी ने उन सभी कार्यों को पूरा करने के लिए 15 दिन का समय लिया। परन्तु जैसा आज तक होता आया है। जिला प्रशासन ने कम्पनी के साथ मिलकर अपने वायदे के अनुसार काम करने के स्थान पर नेतृत्व कर रहे लोगों को झूठे मुकदमें में फंसा दिया।
काम बंदी के दौरान हुए हानि का ठिकरा इन युवकों के सिर डाल दिया तथा करोड़ों के हर्जाने का भय इन युवकों को दिखाया। एक बार भी प्रशासन एवं कम्पनी के लोगों ने यह विचार नहीं किया कि आज जो स्थिति उत्पन्न हुई है उसके असली जिम्मेदार वे ही लोग हैं। हर्जाना तो इन्हें ही भरना चाहिए आन्दोलनकारियों को नहीं। यहाँ युवकांे ने साहस का परिचय दिया और अभयता के साथ आन्दोलन को जारी रखा। आज कम्पनी द्वारा किए जा रहे गैर कानूनी कार्यों के विरुद्ध लोगों में जबरदस्त संघर्ष का उबाल आ गया है।
अब कम्पनी के वादा िखलाफी पर एक नजर -
अब कम्पनी के वादा िखलाफी पर एक नजर -
1. कम्पनी ने वादा किया था कि स्थानीय युवकों को कम्पनी में स्थायी नौकरी देंगे। इसके विपरीत कम्पनी ने अपने आउटसोर्सिंग का कार्य करने वाली कम्पनियों में युवकों को अस्थायी तौर पर ठेका मजदूर बनाया फिर 2-3 वर्षों में 90ः की छंटनी कर उन्हें पलायन करने को मजबूर कर दिया।
2. घनी आबादी के अंतिम मकान से 100 मीटर की दूरी से कम में ब्लास्टिंग करना मना है परन्तु कम्पनी ने 10-20 मीटर की दूरी पर हैवी ब्लास्टिंग शुरू कर दीया। इससे आसपास के सभी घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। घर की क्षतिपूर्ति का मुआवजा मांगने गए 15 युवकों पर रंगदारी का मुकदमा कम्पनी ने ठोक दिया। इस प्रकार कम्पनी ने चोरी और सीना जोरी की कहावत को चरितार्थ किया है।
3. ब्लास्टिंग एक निश्चित अवधि दिन के 12-1 बजे के बीच करना निर्धारित किया गया था। हैवी ब्लास्टिंग तो रात के 8 बजे भी करना शुरू किया। कई बार शाम के समय कई घण्टों में चूल्हे पर बन रहा भोजन ब्लास्टिंग के कंपन से जमीन पर गिर गया। इस हैवी ब्लास्टिंग का विरोध करने पर इसका असर एक दिन तक पड़ता है दूसरे दिन वही प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस ब्लास्टिंग का कंपन खदान से 3-4 किमी. तक अनुभव किया जा सकता है।
4. कम्पनी ने सभी घरों में शौचालय निर्माण के लिए लोहंडिया बाजार के गृहस्वामियों के खातों में नगद रुपए 25 जुलाई से 10 अगस्त 2014 तक जमा करने का लिखित आश्वासन दिया था परन्तु सितम्बर बीत जाने तक भी ऐसा नहीं किया गया।
5. खदान का पानी बरसात में लोगों के खेतों में नहीं छोड़कर नाले में छोड़ना था परन्तु कम्पनी लोगों की फसलों को बर्बाद करने की नीयत से उनके खेतों में छोड़ देती है जिससे कई किसानों की फसल नष्ट हो गयी।
6. पेयजल, शिक्षा, बिजली एवं स्वास्थ्य सुविधा देने का वचन आज तक अपने पूर्ण होने का बाट जोह रहा है।
7. कम्पनी ने वार्त्ता के समय लोगों को आश्वस्त किया था कि वे सभी मुकदमें बिना शर्त वापस लेगी लेकिन वक्त आने पर वह गिरगिट की तरह रंग बदलती है और भ्रष्ट झारखण्डी पुलिस को अपने वश में करके नेतृत्वकारी युवकों को गिरफ्तार करने आधी रात में उनके घरों पर जाती है और घर के सदस्यों के साथ गाली गलौज करती है। ऐसे कुकृत्यों एवं दमन ने लोगों को भयभीत करने के स्थान पर एकजुट कर शोषण के खिलाफ दृढ़ संकल्पित कर दिया है जिसका नतीजा है कि सितम्बर के प्रथम सप्ताह में पुनः खदान का खनन कार्य लोगों ने दूसरी बार पूरी तरह ठप कर दिया। अब लोगों ने 8 जुलाई 2013 में आए सर्वोच्च न्यायालय के एक अहम फैसले जिसमें कहा गया है कि ‘‘खनिज का मालिक जमीन मालिक ही है सरकार नहीं’’ के अनुरूप आगे होने वाले विस्तार को रोकने के लिए पूरी तरह कमर कस के तैयार हैं।
2. घनी आबादी के अंतिम मकान से 100 मीटर की दूरी से कम में ब्लास्टिंग करना मना है परन्तु कम्पनी ने 10-20 मीटर की दूरी पर हैवी ब्लास्टिंग शुरू कर दीया। इससे आसपास के सभी घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। घर की क्षतिपूर्ति का मुआवजा मांगने गए 15 युवकों पर रंगदारी का मुकदमा कम्पनी ने ठोक दिया। इस प्रकार कम्पनी ने चोरी और सीना जोरी की कहावत को चरितार्थ किया है।
3. ब्लास्टिंग एक निश्चित अवधि दिन के 12-1 बजे के बीच करना निर्धारित किया गया था। हैवी ब्लास्टिंग तो रात के 8 बजे भी करना शुरू किया। कई बार शाम के समय कई घण्टों में चूल्हे पर बन रहा भोजन ब्लास्टिंग के कंपन से जमीन पर गिर गया। इस हैवी ब्लास्टिंग का विरोध करने पर इसका असर एक दिन तक पड़ता है दूसरे दिन वही प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस ब्लास्टिंग का कंपन खदान से 3-4 किमी. तक अनुभव किया जा सकता है।
4. कम्पनी ने सभी घरों में शौचालय निर्माण के लिए लोहंडिया बाजार के गृहस्वामियों के खातों में नगद रुपए 25 जुलाई से 10 अगस्त 2014 तक जमा करने का लिखित आश्वासन दिया था परन्तु सितम्बर बीत जाने तक भी ऐसा नहीं किया गया।
5. खदान का पानी बरसात में लोगों के खेतों में नहीं छोड़कर नाले में छोड़ना था परन्तु कम्पनी लोगों की फसलों को बर्बाद करने की नीयत से उनके खेतों में छोड़ देती है जिससे कई किसानों की फसल नष्ट हो गयी।
6. पेयजल, शिक्षा, बिजली एवं स्वास्थ्य सुविधा देने का वचन आज तक अपने पूर्ण होने का बाट जोह रहा है।
7. कम्पनी ने वार्त्ता के समय लोगों को आश्वस्त किया था कि वे सभी मुकदमें बिना शर्त वापस लेगी लेकिन वक्त आने पर वह गिरगिट की तरह रंग बदलती है और भ्रष्ट झारखण्डी पुलिस को अपने वश में करके नेतृत्वकारी युवकों को गिरफ्तार करने आधी रात में उनके घरों पर जाती है और घर के सदस्यों के साथ गाली गलौज करती है। ऐसे कुकृत्यों एवं दमन ने लोगों को भयभीत करने के स्थान पर एकजुट कर शोषण के खिलाफ दृढ़ संकल्पित कर दिया है जिसका नतीजा है कि सितम्बर के प्रथम सप्ताह में पुनः खदान का खनन कार्य लोगों ने दूसरी बार पूरी तरह ठप कर दिया। अब लोगों ने 8 जुलाई 2013 में आए सर्वोच्च न्यायालय के एक अहम फैसले जिसमें कहा गया है कि ‘‘खनिज का मालिक जमीन मालिक ही है सरकार नहीं’’ के अनुरूप आगे होने वाले विस्तार को रोकने के लिए पूरी तरह कमर कस के तैयार हैं।
साभ्ाारः पीपुल न्यूज नेटवर्क (पीएनएन)