एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
देश कि जनता भूखी है ये आजादी झूठी है। यह नारा आज से 50 साल पहले महाराष्ट्र के मशहूर चित्रनाट्यकार अन्ना भाऊ साठे ने लगाया था। उन्होंने अनेक सफल फिल्मों का चित्रनाट्य लिखा, परंतु विडंबना देखिये वे खुद गरिबी की मौत दिवंगत हुए।लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनावों के लिए मनोनयन दाखिल करने वाले उम्मीदवारों की संपत्ति का ब्यौरा देखिये तो समझ में आ जाये कि जनता कैसे कंगाल है और नेता किस कदर मालामाल है। लोकसभा चुनावों के साथ ओडीशा में विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं और दांतों में उंगलियां दबाने लायक बात यह है कि कालाहाडी की भुखमरी के लिए मशहूर ओडीशा के विधानसभा चुनावों में दस बीस नहीं,बल्कि 103 करोड़पति उम्मीदवार हैं।सारे मूर्धन्य राजनेताओं की संपत्ति में बिना कहीं पूंजी लगाये दुगुणी चौगुणी बढ़ोतरी हो गयी है पिछले पांच साल के दौरान। अब वे मतदाता हिसाब लगायें जो उन्हें वोट डालकर अपना भाग्य विधाता बनाते हैं कि इन नेताओं की बेहिसाब संपत्ति और आय के मुकाबले
पिछले पांच साल के दौरान उन्हें क्या मिला और क्या नहीं मिला।
जाहिर है कि लोकसभा चुनावों में जनादेश बनाने के लिए चुनाव प्रचार अभियान जितना तेज हो रहा है,हर ओवर के अंतराल में जो मधुर जिंगल से हम मोर्चाहबंद होते हैं, फिर ऐन चुनावमध्ये जो आईपीएल कैसिनों के दरवाजे खुलने हैं,जो हवाई यात्राएं तेज हो रही है,जो पेड न्यूज का घटाटोप दिलोदिमाग को व्याप रहा
है,उतनी ही तेजी से विदेशी पूंजी के अबाध प्रवाह और निवेशकों की अटूट आस्था बजरिये शेयरों में सांढ़ों की धमाचौकड़ी की तरह चुनाव खर्चों में बेहिसाब कालाधन की बेइंतहा खपत हो रही है और यह धन किसी स्विस बैंक खाते से भी नहीं आ रहा है,जिसे रोका जा सकें। वह कालाधन अगर वोट कारोबार में खप जाता तो
बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के कालाधन वापसी अभियान के रुक जाने का खतरा था।जो कालाधन चुनाव में लगा है ,वह इसी देश की बेलगाम अर्थव्यवस्था की रग रग से निकल रही है और जिसे नियंत्रित करने में स्वायत्त चुनाव आयोग भी सिरे से नाकाम है।भ्रष्टाचार को बाकी बेसिक अनिवार्य मुद्दों के मुकाबले मुखय
मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही राजनीति का यह असली चेहरा है जो कोयला घोटाले की तरह काला ही काला है।
गौरतलब है कि सोमवार से से शुरु हो रहे लोकसभा चुनावों में तीस हजार करोड़ रुपये खर्च होने का फिलहाल अंदाजा है।आवक और मांग की सुरसाई प्रवृत्ति के मुताबिक यह रकम आखिरकार कितनी होगी कहना मुश्किल है।मौजूदा हालात में सीएमएस के सर्वे के मुताबिक चुनावों पर खर्च होने वाले इन तीस हजार करोड़ रुपये का दो तिहाई ही कालाधन है।लोकतंत्र को अर्ततंत्र में बदलकर नेता जो मालामाल हो रहे हैं और जनता जो कंगाल हो रही है,उसका ताजातरीन सबूत यह है।
अबकी दफा विज्ञापनी तमाम चमकदार चेहरे चुनाव मैदानों में हैं।कालाधन से चलने वाले कारोबार से जुड़े तमाम ग्लेमरस लोग खास उनम्मीदवार है जिनके पास अकूत संपत्ति है और कोई नहीं जानता कि जीत की बाजी जीतने के लिए आखिर अपने अपने हिस्से का कालाधन देश विदेश से खोदकर कहां कितना वे लगा देंगे। फिलहाल सीएमएस के आकलन को ही सही मान लिया जाय तो अबकी दफा चुनाव कार्निवाल में
होने वाला खर्च सारे रिकार्ड ध्वस्त करने जा रहा है।इस खर्च में सरकारों की ओर से वोट बैंक समीकरण साधने के लिए मतदान प्रक्रिया शुरु होने से पहले आचार संहिता के अनुपालन के साथ जो रंग बिरंगी खैरात बांटी गयी,उसे सफेद धन मान लिया जाये,तो यह खर्च तीस हजार करोड़ से कईगुणा ज्यादा हो जायेगी।
अपने अपने हित साधन के लिए कंपनियां मुफ्त में अपने जो साधन संसादन लगा रही हैं,वह भी हिसाब से बाहर है।पार्टियों की सांगठनिक कवायद का भी कोई हिसाब नहीं है।हार निश्चित हर क्षेत्र के उन उम्मीदवारों,जिनकी अमूमनजमानत जब्त हो जाती है या ऐन तेण प्रकारेण जो वोट काटने के लिए मैदान में होते हैं, उनकी कमाई और बचत का भी कोई लेखा जोखा नहीं होता।
सीएमसी के मुताबिक राजनीति दलों की ओर से आठ दस हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं तो निजी तौर पर खर्च की जाने वाली रकम भी दस से लेकर तेरह हजार करोड़ रुपये हैं।
शेयर बाजार की उछाल, सोने की तस्करी से लेकर हजार तौर तरीके के मार्फत देश विदेश से इतनी बड़ी रकम बाजार में खपने जा रही है।समझा जाता है कि अकेले शेयर बाजार मार्फत पांच हजार करोड़ रुपये चुनावों में कपने वाले हैं।अब चर्बीदार नेताओं की सेहत का राज समझ लीजिये।