शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

लम्बे संघर्ष के बाद महिन्द्रा सीआईई मज़दूरों की जीत

रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर)। महिन्द्रा ग्रुप की आॅटोपार्ट निर्माता महिन्द्रा सीआईई के मज़दूरों का संघर्ष रंग लाया। सहायक श्रमायुक्त ऊधम सिंह नगर की मध्यस्तता में 11 दिसम्बर की देर रात्रि तक चली वार्ता के बाद दो बर्खास्त श्रमिकों हेम चंद और दीपक सिंह कार्की की बिना शर्त कार्यबहाली और 8 फीसदी वेतन बृद्धि का समझौता हो गया। वेतन बृद्धि 1 जनवरी, 2016 से एक वर्ष के लिए हुआ है। समझौते के तहत प्रबन्धन प्रतिशोधवश मज़दूरों पर कोई उत्पीड़नात्मक कार्यवाही नहीं करेगा। मज़दूरों को कोई अंडरटेकिंग भी नहीं देना पड़ा।
उल्लेखनीय हैं कि डेढ़ साल पूर्व 20 अगस्त, 2014 को मज़दूरों ने कम्पनी प्रबन्धन को एक माँग पत्र दिया था, जिसके प्रतिशोधवश प्रबन्धन ने श्रमिक प्रतिनिधि हेम चंद व दीपक सिंह को पहले निलम्बित फिर बर्खास्त कर दिया था। इस बीच सहायक श्रमायुक्त के लिखित समझौते व एसडीएम के समक्ष सहमति के बावजूद कार्यबहाली नही हुई थी। श्रम विभाग व प्रशासन भी अपने वायदे से मुकर गया था। खुद पूर्ववर्ती डीएम ने केवल एक को काम पर लेने की धमकी दी थी, तो नये डीएम ने धरना उखाड़ने की धमकी दी। लेकिन महिन्द्रा सीआईई के श्रमिक अवैध रूप से बर्खास्त दो श्रमिकों की कार्यबहाली और माँगपत्र के समाधान के लिए 69 दिनों तक डीएम परिसर में धरनारत रहे।
महज 38 स्थाई श्रमिकों की ताकत पर मज़दूरों ने काफी सूझ-बूझ भरे कदम उठाए। मजदूरों ने महिन्द्रा सीआईई के जिले में स्थित लालपुर प्लाण्ट के मजदूरों से एकता बनाई और वहाँ के मज़दूरों ने भी अपना माँगपत्र लगाया, जिसमें दोनो की कार्यबहाली की भी माँग उठाई। दूसरी तरफ उन्होंने इलाके की तमाम यूनियनों को भी लामबन्द किया और अपनी माँग के साथ वीएचबी, मित्तर फाॅस्टनर, पारले व डेल्फी टीविएस के श्रमिक उत्पीड़न के विरुद्ध 14 दिसम्बर को मज़दूर पंचायत बुलाई। इससे प्रशासन और प्रबन्धन दोनों पर दबाव बन गया। यूनियनों की साझा संघर्ष की घोषणा के तत्काल बाद आनन-फानन में डीएम ने वार्ता बुलाकर प्रबन्धन पर दबाव बनाया और एएलसी से दो दिनों में समाधान निकालने का निर्देश दिया। इन स्थितियों में महिन्द्रा सीआईई के मजदूरों की जीत हुई। इससे अन्य मज़दूरों के संघर्ष को भी दम मिला है और उनका संघर्ष भी तेज होने लगा है।
इस संघर्ष में एक ऐसे वक्त में कामयाबी मिली है, जब मज़दूरों पर लगातार हमले जारी हैं। आज के दौर में एक बार बर्खास्त होने के बाद कार्यबहाली बेहद मुश्किल भरा काम हो चुका है। ऐसे में बगैर यूनियन के महज 38 श्रमिकों की ताकत पर 16 महीने तक बगैर थके संघर्ष चलाकर इस मुकाम तक पहुँचना बेहद अहम है। एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि अभी इस इलाके में पिछले दिनों मजदूरों को जो थोड़ी बहुत जीत अपने संघर्षों के दम पर मिली है, उसका श्रेय नेता लूटते रहे हैं। इस आन्दोलन में सहयोग मजदूरों ने सबका लिया, लेकिन जीत का श्रेय किसी चुनावी नेता को नहीं अपितु खुद मजदूरों के एकताबद्ध संघर्ष को ही मिला है।
संघर्षरत रहे मजदूरों ने इलाके की यूनियनों के नाम जारी धन्यवाद पत्र में कहा है कि इस छोटी सी अहम जीत ने आगे के कठिन लम्बे संघर्ष के लिए हमें जो ताकत दी है, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है। इससे हममें संघर्ष से जीत की एक नयी उम्मीद पैदा हुई है।