बुधवार, 29 अप्रैल 2015

जोखिम जनता के मत्थे, मुनाफा कम्पनियों का

एम रंजन
कौन कहता है कि अच्छे दिन नहीं आ रहे हैं! अच्छे दिन की बहार है! देश के वजीरे आला जनाब नरेन्द्र मोदी ने अभी-अभी अपने तीन देशों की यात्रा के दौरान फ्रांस, जर्मनी, कनाडा में जाकर क्या कहा, आपने नहीं सुना? हर जगह उन्होंने उद्योग जगत की शीर्ष हस्तियों से गुहार लगाई कि ‘भारत अब बदल चुका है। आप पुरानी धारणाओं पर न चलें। ...आप आएं और भारत के माहौल में बदलाव महसूस करें।’
वे मुनाफे की गारण्टी देते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार ने एफडीआई ;सीधा विदेशी निवेशद्ध को निवेशकों के अनुरूप बनाया है। हमने कई तरह की प्रतिगामी कराधान व्यवस्था को खत्म कर दिया है। हम लगातार कारोबारी माहौल और बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। बड़े गर्व से बताते हैं कि श्रम कानून बदलकर
तमाम बाधायें वे दूर कर रहे हैं। जहाँ जितनी जमीन चाहिए, आसानी से मिलेगी। पर्यावरण मंजूरी व औद्योगिक लाइसेंस की अवधि के विस्तार, औद्योगिक व बुनियादी ढा़चा परियोजनाओं के प्रस्तावों की मंजूरी, रक्षा उत्पादों के विनिर्माण के लाइसेंसों की अनिवार्यता जैसी तमाम ‘बाधाएं’ खत्म करने के लिए सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं।
क्या ये अच्छे दिन की शुरुआत नहीं है? किसी के हित में तो ‘माहौल बदल’ बदल रहा है, कानून बन-बिगड़ रहा है! तभी तो इस बार के बजट में भी मोदी सरकार की प्राथमिकताएं साफ थीं। कार्पोरेट जगत को 5.90 लाख करोड़ रुपये का कर रियायत दिया और कल्याणकारी योजनाओं के मद में सब्सिडी को 2.6 फीसदी से घटाकर 2.4 फीसदी कर दिया। खाद्य सुरक्षा कानून का दायरा 67 फीसदी आबादी से घटाकर 40 फीसदी आबादी तक
करने का प्रस्ताव दे दिया। पहले से ही कयामत ढा रही सेवाकर के दायरे को 12.3 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया। यानी महँगाई को और बढ़ाने का इन्तेजाम कर दिया। क्या यह मोदी रूपी अच्छे दिन का सूचक
नहीं है कि जो धनपति आसानी से सरकारी कर दे सकते हैं, उनकी टैक्स दरें कम कर दीं और आम मेहनतकश जनता पर टैक्स बढ़ा दिया!
धनपतियों के लिए सरकार ने बजट में सम्पदा कर समाप्त करने के साथ ही कॉर्पोरेट टैक्स 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी कर दिया। जबकि आम गरीब जनता से जुड़े प्राथमिक शिक्षा के मद में 21 फीसदी, मिड-डे मील पर 25 फीसदी और बाल विकास मद में 50 फीसदी कटौती पेश कर दी। सारे मानकों को धता बताते हुए बीमा व रक्षा क्षेत्रों में एफडीआई 49 फीसदी, बैंक में 51 फीसदी और कई रेल परियोजनाओं में 100 फीसदी तक विदेशी निवेश की सीमा अच्छे दिन के लिए ही तो किये हैं जनाब! मतलब मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेसी
नीत सरकार के ही नक्शेकदम पर चलते हुए उसकी गति को तेज कर दी। यह तो अच्छे दिन की ही बात है कि मनमोहन सरकार के दौर में जनता को रौंदने वाला जो घोड़ा खच्चर की चाल चल रहा था, उसे मोदी साहब ने अरबी नस्ल के घोड़े की रफ्तार दे दी।
यह मोदी सरकार की उदारता ही तो है कि ऐसी योजनाओं को अम्ली रूप देने में जुटे हैं, जिसमें हर प्रकार का जोखिम व घाटा सरकार यानी जनता के हिस्से आये, और सारा मुनाफा देशी-विदेशी निजी कम्पनियों की झोली में समा जाए। इसीलिए उन्होंने पिछली कांग्रेसी सरकार की पीपीपी ;सार्वजनिक-निजी भागेदारीद्ध
योजना को गति दे दी है। अच्छे दिन यानी पीपीपी। मतलब सरकार आसानी से किसानों की जमीन हथियायेगी, उस पर कारखाना निजी कम्पनी की होगी। किसान पहले अपनी जमीन से हाथ धो बैठेगा। फिर वहाँ लगने वाले कारखाने में दिहाड़ी के लिए ठेकेदार की हुज्जत सहेगा। बाद में मुनाफा बटोर कर कम्पनी कंकरीट का ढेर छोड़कर पलायन कर जाएगी। ऐसे ही, रेल की पटरी सरकारी होगी, उस पर टेªन दौड़ेगी किसी जापानी या अमेरिकी कम्पनी की।
यही तो हैं अच्छे दिन! आखिर किसी के लिये तो आ ही रहे हैं न अच्छे दिन! सबकी खुशहाली तो एक साथ आ नहीं सकती। जनाब मोदी और उनकी जमात में शामिल बौ(िक जमात का मानना है कि ऊपर के थोड़े लोग खुशहाल होंगे तो नीचे की आबादी के पास भी ऊपर से छलक कर थोड़ी खुशहाली आ जाएगी! सो पहले अच्छे
दिन तो मुट्ठीभर ऊपरी तबके की ही तो लाने में जुटी है मोदी सरकार! बाद का कौन जाने...?

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