रविवार, 26 अक्तूबर 2014

छत्तीसगढ़ में कोयला खदान आवण्टन में महाघोटाला

                                                                     एस.के. राय
आजादी बचाओ आन्दोलन के अथक प्रयास से देश की कोयला खदान घोटाले पर कैग (मुख्य लेखाधिकारी) के साथ देश के सर्वोच्च न्यायालय को भी इसे संज्ञान में लेने को बाध्य होना पड़ा, कैग ने तो सम्पूर्ण देश में 1.86 लाख करोड़ का नुकसान बताया जबकि यह लगभग 50 लाख करोड़ का होता है। आन्दोलन ने देश के कोने-कोने में जब इस विषय पर जनजागरण का बीड़ा उठाया तो एक नया विकल्प भी सामने रखा कि प्राकृतिक संसाधनों का मालिक कौन? जब संसाधनों की मालकियत के बारे में सवाल उठाया जाने लगा तो न्यायालय को भी यह कहना पड़ा कि प्राकृतिक संसाधनों की मालिक जनता है, इसी आधार पर जब जाँच शुरू हुई तो देश के 218 कोयला खदान आवण्टन को ही अवध्ै ा पाया गया, इन अवैध खदानो ं में 62 कोयला खदानों का केवल छत्तीसगढ़ राज्य में पाया जाना और अधिकांश खदान भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमन्त्री श्री रमनसिंह के शासन में आवण्टन करना सीधा श्री रमणसिंह पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने के लिए पर्याप्त है।
कोयला मन्त्रालय की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ में कोयले का कुल भण्डार 49280.25 मिलियन टन है, इनमें से 11170.6 मिलियन टन कोयला अवैध खदानों में बाटा गया है जिसका न्यूनतम अनुमानित मूल्य 33,51,180 करोड़ रुपये है। शासन के साथ मिलकर उद्योगपतियों ने जिस तरह प्राकृतिक संसाधनों की लूट को अंजाम दिया उसका तार मध्यप्रदेश के एसएमएस इंफ्रास्ट्रक्चर नाम की एक कम्पनी जिसके ज्वाइण्ट एमडी अजय संचेती बीजेपी के राज्यसभा सांसद हैं और बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी वर्तमान में केन्द्रीय मन्त्री के करीबी माने जाते हैं। भटगाँव कोयला खदान के साथ-साथ नवीन जिंदल स्टील एण्ड पावर जो रायगढ़ जिले में स्थित हैं।
आजादी बचाओ आन्दोलन के साथी यहाँ स्थानीय संगठनों के साथ मिलकर तमनार क्षेत्र में गैर कानूनी रूप से आवंटित गारे की कोयला ब्लाक को निरस्त करने में सफलता के साथ यहाँ पर प्राकृतिक संसाधनों में जन भागीदारी और मालकियत स्थापित हेतु उत्पादक कम्पनी का गठन किया गया जो कम्पनी कानून के अनुसार पंजीकृत भी हो चुकी है, शीघ्र ही यहाँ कोयला उत्पादन शुरू होने की सम्भावना है।
जब तमनार क्षेत्र में आन्दोलन के साथी अवैधानिक कार्य में लिप्त नवीन जिन्दल जो सांसद भी हैं के विरोध में सक्रिय थे तब यह जानकर हैरानी हुई कि आदिवासियों के नाम पर बेनामी जमीन खरीद कर कम्पनी ने किस तरह कानून को मजाक बना दिया। छत्तीसगढ में आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी नहीं खरीद सकते उसके लिए 170 ख कानून बनाया गया है, इस कानून को धोखा देने के लिए किसी भी आदमी को आदिवासी बनाकर पंजीयन कार्यालय में खड़ा कर दिया जाता है और बनामी पंजीयन भी हो जाता है, यह कार्य शासन-प्रशासन की मिलीभगत के बिना नहीं हो सकता, डरा धमका कर जन सुनवाई करना,  विरोध करने पर पुलिस द्वारा लाठियाँ चलाने की बात तो आम हो चुकी है, तमनार में भी जन सुनवाई के दौरान नवीन जिन्दल के साथ मिलकर पुलिस ने लाठी चार्ज किया इसमें कई पुरुष महिलाएँ घायल हुए। नवीन जिंदल पर एफ.आई.आर. दर्ज हो चुका है निकट भविष्य में इसकी गिरफ्तारी को कोई टाल नहीं सकता।
वनाच्छादित जैविक संसाधनों से पूर्ण, वन्यजीवों से भरपूर, छत्तीसगढ में आदिवासियों की जीविका का एक मात्र साधन इस प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने के लिए उद्योगपतियों के साथ शासन भी जिस तरह से जनता पर अत्याचार का पर्याय बनता जा रहा है उससे न केवल जनसमुदाय त्रस्त है बल्कि वन्यजीवों के लिए भी अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है, खदान के नाम पर बीहड़ जंगल की बलि दी जा रही है वहाँ के वन्यजीव गाँव की ओर चले आते हैं अब तो शहर पर भी उन्होंने हमला करना शुरू कर दिया है, खदान के कारण मनुष्य और हाथियों के भी संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
सम्पूर्ण क्षति का आंकलन करना किसी भी स्थिति में सम्भव नहीं, पर्यावरण का जो नुकसान होगा उसकी तो भरपाई सैकड़ों वर्षो तक सम्भव नहीं, छत्तीसगढ ही नहीं देश-दुनियाँ में जहाँ भी प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन हुआ है वहाँ प्रकृति का रौद्ररूप देखने को मिला जिसने सम्पूर्ण प्राणिजगत के लिए अस्तित्व का सवाल खड़ा कर दिया है, अब समय आ चुका है कि हम ठहरें और विचार करें कि विकास मनुष्य के लिए या मनुष्य विकास के लिए हैं, उत्तराखण्ड और अभी हाल कश्मीर का महाजलप्लावन, जल सैलाब प्रकृति के साथ खिलवाड़ का ही दुष्परिणाम है। छत्तीसगढ का कोरबा, भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है पिछले 3 वर्ष पूर्व की रिपोर्ट के अनुसार चौथे स्थान पर था आज यदि जाँच हो तो यह दूसरे स्थान पर अवश्य होगा, इसका मुख्य कारण कोयला खदान और ताप विद्युत कम्पनियाँ ही हैं। विकास के नाम पर विनाश की ओर बढ़ते हुए छत्तीसगढ को इन गम्भीर समस्याओं पर विचार करना होगा।
साभारः पीएनएन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें