बुधवार, 3 अप्रैल 2013

शालिनी की मौत पर उठे सवाल


लखनऊ 02 अप्रैल। नगर की कई सामाजिक-राजनैतिक संगठनों के संयुक्त तत्वावधान में आज सामाजिक कार्यकत्री सुश्री शालिनी के असामयिक निधन पर एक श्रद्धांजली सभा प्रेस क्लब में की गयी। इस श्रंद्धाजली सभा में नगर के सैकड़ों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उपस्थिति होकर अपनी श्रंद्धाजली अर्पित की।
     शालिनी अपने छात्र जीवन से ही सामाजिक कामों में लग गयी थीं और अंतिम सांस तक उसके प्रति समर्पित रहीं। करीब दो दशक तक वे लखनऊ में सक्रिय रहीं। एक बेहद संवेदनशील, विश्वसनीय और कठोर श्रम वाले व्यक्तित्व की इस महिला ने एक न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव व पर लगा दिया, यहां तक कि अन्त में जीवन भी। वे करीब दो वर्षो से बीमार चल रही थीं, लेकिन उनका करीब तीन महीने पहले व्यवस्थित इलाज शुरू हुआ। इलाज के शुरू होते ही पता चला कि कैंसर का रोग उनके पूरे शरीर में फ़ैल चुका था और अब कोई दवा काम नहीं करेगी। 21 दिसम्बर, 1974 में बलिया में जन्मी शालिनी ने 29 मार्च, 2013 को दिल्ली के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। मेरी अपील है कि शालिनी के दो वर्ष की मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध कराने में आप लोग मदद करें।        -सत्येन्द्र कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता व शालिनी के पिता 
         इस गमगीन मौके पर उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने उनके इस त्यागपूर्ण योगदान के लिए अभार प्रकट किया और अपनी इस बहादुर बेटी को सलाम किया। आवाज़ की अल्का जी ने सवाल उठाया कि एक दिन में कोई 35 वर्ष की लड़की नहीं मरेगी आम जनता में ऐसे मौत पर हम सवाल उठाते हैं तो इस पर क्यों नहीं उठाया जाना चाहिए। इप्टा के राकेश ने शालिनी की कथित वसीयतनामा को घृणित व अमानवीय करार देते हुए कहा कि इसके मन्तब्य बड़े विचित्र दिखते हैं। जन संस्कृति मंच की ताहिरा ने कहा कि जो प्रश्न मानवीयता को ही उखाड़ फेकती है उसके लिए आगे एक मज़बूत बहस की जरूरत है। टीम अन्ना के आलोक सिंह ने कहा कि विचार मौत से बड़ी होती है। विपिन जी ने कहा कि कली समय से पहले ही मुरझा गयी और संवादहीनता की स्थिति ने इसे जन्म दिया। आम आदमी पार्टी के राजीव पाण्डेय ने विचारधारा का सवाल उठाया। डा. रमेश दीक्षित और काकोरी उत्थान स्मारक पुर्नउत्थान समिति के एम.के. सिंह ने शालिनी की मौत पर गहरी चिन्ता प्रकट की। पीयूसीएल की वन्दना मिश्रा ने आश्चर्य प्रकट किया कि किताबों के बीच पली-बढ़ी लड़की शालिनी कैसे अपने कष्ट को नहीं समझ सकी। जनजागरूकता अभियान के सीबी सिंह ने कहा कि जनवादी आन्दोलन में आज ढेरों खुराफात हो रहे हैं जिसे रोकने की जरूरत है। नागरिक परिषद के के.के.शुक्ला ने कहा कि शालिनी आर्थिक, सामाजिक, बेईमानी की शिकार हुई। आम आदमी पार्टी की अरूणा सिंह ने कहा कि इसके खिलाफ संघर्ष का संकल्प लेकर ही सच्ची श्रद्धान्जली दे सकते हैं। पंतनगर से आए प्रोफेसर भूपेश कुमार सिंह ने कहा कि जिस संगठन से शालिनी जुडी हुई थीं वहां असहमति की कोई जगह नहीं है। उन्होंने शालिनी की मौत पर भी सवाल उठाया। राही मासूम रज़ा फाउण्डेशन के राम किशोर ने ऐसे संगठनों को बेनकाब करने का आह्वान किया। आॅल इण्डिया वर्करस काउन्सिल के राम कृष्ण जी ने कहा कि शालिनी ने घर न बनाने का फैसला करके जो मिसाल कायम की दअसल उसी का दोहन हुआ। सामाजिक कार्यकर्ता मुकुल ने शालिनी के साथ गुजारे दिनो की चर्चा करते हुए बताया कि साथी शालिनी की मृत्यु ने कुछ नए प्रश्नों को जीवित कर दिया। हलांकि वे प्रतिकूल स्थितियों में भी अपने कामों की निरंतरता से लोगों में इस उम्मीद को बनाये रखने में मदद की, कि अन्याय का राज मिटेगा और एक नयी और बेहतर दुनिया बनेगी। अखिलेश जी ने कहा कि शालिनी रोज़ शाम को हजरतगंज लखनऊ में किताबों का स्टाल लगाती थीं। लखनऊ शहर के सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं नागरिकों की उन्होंने जरूरी पुस्तकें उपलब्ध करवा के बड़ी सेवा की। जन कलाकार परिषद के डा नरेश, अनमोल, सी.एम. शुक्ला आदि ने भी अपनी बात रखे। संचालन सामाजिक कार्यकर्ता ओ.पी. सिन्हा ने किया।  

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