शनिवार, 23 मार्च 2013

उत्तरांचल में प्राकृतिक संसाधनों की लूट

                                                      राजीव लोचन साह
देशभर में देशी-विदेशी कंपनियों द्वारा प्राकृतिक संसाधनों की जो लूट चल रही है, वह उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं के रूप में दिखायी दे रही है। राज्य बनने के तत्काल बाद ऐसी 558 परियोजनाएं या तो बन चुकी हैं या निमार्णाधीन हैं। इन परियोजनाओं में मुनाफा इतना अधिक है कि कृष्णा निटवियर जैसी कच्छा-बनियान बनाने वाली कम्पनियां भी अपना मुख्य काम छोड़कर बिजली बनाने के लिए उतर गई हैं। राजनीतिक दलों के लिए अपना पार्टी फंड भरने के लिए यह परियोजनाएं बेहद मुफीद साबित हुई हैं और इसीलिए पिछले 12 साल में प्रदेश में भाजपा या कांग्रेस, जिसकी भी सरकार रही हो, इन परियोजनाओं की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है।

देवभूमि में कई नदियों के किनारे जल विद्युत परियोजनाओं को हरी झंडी दे दी गई है। जहां जल विद्युत परियोजनाएं बन रही होती हैं, वहां के निवासियों को इनके बनने की सूचना तब मिलती है, जब कंपनियां अपनी मशीनें और मजदूर लेकर परियोजना स्थल पर पहुंच जाती हैं। नियमत: पर्यावरण आकलन रिपोर्ट या जन सुनवाई की औपचारिकताएं होनी चाहिए, लेकिन वे पीठ पीछे कागजों पर कर ली जाती हैं। जब जनता प्रतिरोध करती है, तब उन पर प्रशासन की ओर से भीषण दमन होता है। टिहरी जनपद में फलेंडा में भिलंगना तथा रुद्रप्रयाग जनपद में मंदाकिनी नदियों पर बनने वाली परियोजनाओं में महिलाओं और बच्चों तक को जेल में डाले जाने की घटनाएं हुई हैं। कंपनियों से मिलने वाले विज्ञापनों के दबाव में मीडिया इन घटनाओं की पूरी तरह अनदेखी करता है।
          पिछले विधानसभा चुनाव के बाद मार्च 2012 में विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक नई बात देखने में आयी। मीडिया ने तो यह बात छिपाने की कोशिश की, मगर अनौपचारिक रूप से यह खुल कर कहा जा रहा है कि बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाने के लिये ‘इंडिया बुल्स’ नामक कंपनी ने जम कर पैसा खर्च किया। बहुगुणा के कुलदीपक साकेत बहुगुणा इस कंपनी में एसोशिएट डायरेक्टर हैं। ‘इंडिया बुल्स’ का विचार उत्तराखंड के जल संसाधनों पर कब्जा कर बड़े पैमाने पर बिजली बनाने का है। सत्ता में आते ही विजय बहुगुणा ने जल विद्युत परियोजनाओं के पक्ष में बहुत बेशर्मी से चिल्लाना शुरू कर दिया। कुछ समय से साधु-संतों द्वारा आस्था के नाम पर गंगा को अविरल बहने देने का अभियान शुरू किया गया है, जिसकी अगुआई सेवानिवृत्त इंजीनियर जीडी अग्रवाल द्वारा की जा रही है। बहुत ज्यादा शोरगुल होने पर केन्द्र सरकार ने कुछ ऐसी परियोजनाओं पर रोक लगा दी है, जिनमें पर्यावरणीय मानकों की जबर्दस्त ढंग से अनदेखी की गयी थी। केन्द्र सरकार ने यह निर्णय उत्तराखंड के हित में नहीं, बल्कि हिन्दुत्व लॉबी को खुश करने के लिये किया, जबकि पर्यावरण का सत्यानाश लगभग हर बड़ी परियोजना में किया गया है। अब बहुगुणा ‘इंडिया बुल्स’ का कर्ज चुकाने की हड़बड़ी में सारे कामधाम छोड़ कर इन बंद पड़ी परियोजनाओं को खुलवाने की कोशिश में लग गये हैं, ताकि राज्य में नई परियोजनाओं के पक्ष में सकारात्मक वातावरण बन सके। इस काम के लिए बहुगुणा ने कुछ प्रमुख बुद्धिजीवियों को भी झोंक दिया है। एक प्रख्यात कवि और एक एनजीओ प्रमुख ने बंद पड़ी परियोजनाएं न खुलने की स्थिति में अपने ‘पद्श्री’ सम्मान तक वापस करने की धमकी तक दे डाली।
आपातकाल जैसी स्थिति
एक वरिष्ठ पत्रकार ‘जनमंच’ नामक संगठन बना कर इतने उग्र क्षेत्रीय रूप में सामने आए हैं कि उन्होंने डॉ. भरत झुनझुनवाला, जो प्रख्यात स्तंभकार हैं, का ठेकेदार लॉबी के गुंडों द्वारा न सिर्फ मुंह काला करवाया, बल्कि यह अपराध करने वाले गुंडों का उन्होंने सार्वजनिक अभिनंदन कर उन्हें ‘उत्तराखंड वीर’ घोषित किया। झुनझुनवाला का पहला अपराध यह है कि वे पहाड़ी मूल के न होने के बावजूद श्रीनगर के पास रहते हैं और दूसरा अपराध यह है कि उन्होंने श्रीनगर में अलकनंदा पर तमाम पयावरणीय मानकों का उल्लंघन कर बनने वाली जल विद्युत परियोजना के खिलाफ न्यायालय से ‘स्टे आॅर्डर’ ले लिया है। हालांकि न्यायालय के आदेश के बावजूद आंध्र प्रदेश की जीवीके कम्पनी जिला प्रशासन के संरक्षण में लुक-छिप कर निर्माण कार्य  जारी रखे हुए है, लेकिन अपने इस कृत्य के कारण झुनझुनवाला कम्पनी और उसके गुर्गों की हिट लिस्ट में आ गये। 9 महीने बीत जाने पर भी जिला प्रशासन ने झुनझुनवाला पर हमला करने वालों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाही नहीं की है। इस मामले में भी सीएम का हाथ होने की बात हवा में है। इस तरह की घटनाओं से प्रदेश में अघोषित आपातकाल की सी स्थिति है।
फूट डालने की कोशिश
इस स्थिति से जूझने के लिए तीन प्रमुख आंदोलनकारी संगठनों, उत्तराखंड लोक वाहिनी, उत्तराखंड महिला मंच और चेतना आंदोलन ने 8 मई 2012 को देहरादून में एक संगोष्ठी की। अंदर संगोष्ठी चल रही थी और बाहर ‘जनमंच’ के लोग ‘बोल पहाड़ी हल्ला बोल’ और ‘जीडी अग्रवाल के समर्थकों वापस जाओ’ के उग्र नारे लगा रहे थे। इस गोष्ठी अच्छी चली और इसमें सबसे महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि अब बाहर से कंपनियों को उत्तराखंड की जल संपदा का दोहन करने नहीं आने दिया जाएगा।
अपमानित किए गए डॉ. भरत झुनझुनवाला
डॉ. भरत झुनझुनवाला, जो प्रख्यात स्तंभकार हैं, का गुंडों ने न सिर्फ मुंह काला किया, बल्कि कुछ लोगों ने इन गुंडों का सार्वजनिक अभिनंदन कर उन्हें ‘उत्तराखंड वीर’ घोषित किया। झुनझुनवाला का पहला अपराध यह है कि वे पहाड़ी मूल के न होने के बावजूद श्रीनगर के पास रहते हैं और दूसरा अपराध यह है कि उन्होंने श्रीनगर में अलकनंदा पर तमाम पयावरणीय मानकों का उल्लंघन कर बनने वाली जल विद्युत परियोजना के खिलाफ न्यायालय से ‘स्टे आॅर्डर’ ले लिया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर 9 महीने बीत जाने पर भी जिला प्रशासन ने झुनझुनवाला पर हमला करने वालों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाही नहीं की है। इस तरह की घटनाओं से प्रदेश में अघोषित आपातकाल की सी स्थिति है।
फूट डालो और राज करो
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं के पक्ष में लॉबीइंग करने और उनके समर्थन में ‘जनमंच’ संस्था द्वारा उग्र क्षेत्रीय भावनाएं भड़काने का अभियान जारी है। युवाओं को गुमराह करने वाला ‘जनमंच’ यह नहीं बताता कि यदि झुनझुनवाला जैसे लोग गैर उत्तराखंडी हैं, तो लहलहाते खेतों को मरुस्थल बनाने के एकमात्र उद्देश्य से प्रदेश में आई आंध्र प्रदेश की जीवीके कंपनी कैसे ठेठ पहाड़ी हो गई? आतंक और दुराव-छिपाव का माहौल इतना है कि पिछली बरसात में उत्तरकाशी में बाढ़ ने भीषण तबाही मचाई। 29 लोग काल कवलित हुए, दस हजार की जनसंख्या प्रभावित हुई और एक हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस बाढ़ का कारण बादल फटना था, लेकिन इसके पीछे असी गंगा पर बनने वाली दो जल विद्युत परियोजनाओं का भी कम हाथ नहीं था।
जनता अपने हाथ में लेगी बिजली उत्पादन
आंदोलनकारियों ने निर्णय लिया है कि जहां-जहां संभावनाए हैं, पर्यावरणीय परिस्थितियां उपयुक्त हैं और क्षेत्रीय ग्रामीण सहमत हैं, वहां पर ‘प्रोड्यूसर्स कंपनी’ बनाकर बिजली बनाई जाएगी। इन कंपनियों में बाहर का व्यक्ति नहीं आ सकता, सिर्फ एक क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोग लोग ही इनमें शेयर होल्डर हो सकते हैं। इस तरह से बिजली बनाने पर पर्यावरण भी बचेगा और लोगों को अपनी जल संपदा से कुछ कमाई करने का मौका भी मिलेगा। इस विचार का स्वागत हुआ है और अल्मोड़ा जनपद में सरयू और टिहरी जनपद में भिलंगना नदियों पर बिजली बनाने के लिये प्रोड्यूसर्स कंपनियां रजिस्टर्ड हो गई हैं। यदि यह प्रयोग सफल रहा तो निस्संदेह उत्तराखंड में हजारों की तादाद में छोटी-छोटी परियोजनायें बनने का काम शुरू हो जाएगा।
मार्च में बड़े आंदोलन की तैयारी
आतंक के इस माहौल को तोड़ने तथा जनता को सही बात बताने के लिए अखिल भारतीय किसान महासभा उत्तराखंड, क्रियेटिव उत्तराखंड, उत्तराखंड लोक वाहिनी, उत्तराखंड महिला मंच, पहाड़ और चेतना आंदोलन आदि संगठनों द्वारा जुलाई में दिल्ली, जोशीमठ और टिहरी तथा अगस्त में श्रीनगर में गोष्ठियां आयोजित की गईं। 22 अगस्त को श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित गोष्ठी जनकवि गिरदा की स्मृति को समर्पित थी। दो वर्ष पूर्व 22 अगस्त को ही दिवंगत हुए गिरदा जनांदोलनों में आजीवन सक्रिय रहे और अपने अंतिम वर्षों में भी उन्होंने बेहद खराब स्वास्थ्य के रहते ‘नदी बचाओ आंदोलन’ में सहभाग करते हुए ‘बोल व्यौपारी तब क्या होगा, विश्व बैंक के टोकनधारी तब क्या होगा’ जैसी कविताएं लिखीं। उत्तराखंड में मार्च-अप्रैल 2013 में बड़ा आन्दोलन छेड़ने की तैयारी चल रही है। इस क्रम में उत्तराखंड लोक वाहिनी, उत्तराखंड महिला मंच और चेतना आन्दोलन ‘आजादी बचाओ आन्दोलन’ के साथ मिल कर मार्च के दूसरे पखवाड़े में पूरे प्रदेश में यात्रा कर जन जागरण करेंगे और 23 अप्रैल को जागेश्वर में एक बृहद् सम्मेलन कर नदियों के पानी पर जनता के स्वामित्व की घोषणा की जाएगी।
(लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और नैनीताल समाचार के संपादक हैं।)

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