बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

औद्योगिक हादसे के शिकार तुगलकाबाद के मजदूर

 समर्थन में आगे आओ!
तुगलकाबाद के फैक्ट्री हादसे के शिकार मजदूरों के परिवारवाले जो पिछले लगभग आठ महीने से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं, समाज के जनपक्षधर व मानवाधिकार संगठनों और न्यायप्रिय जनता से समर्थन की अपील करते हैं।
गौरतलब है कि विगत 25 जनवरी की शाम पांच बजे नई दिल्ली की तुगलकाबाद एक्सटेंशन की गली नंबर 8 में स्थित एक गारमेंट फैक्ट्री में भीषण आगजनी की घटना हुई थी। यह फैक्ट्री अपने यहां फैशनेबल कपड़ों को तैयार कर विदेश में एक्सपोर्ट करती थी। रिहायशी इलाके की महज 80 गज के प्लाट पर बनी इस चारमंजिला फैक्ट्री के चौथे माले पर यह घटना हुई। घटना के समय वहां 36 मजदूर काम कर रहे थे। एक बहुत छोटे जगह में तेजी से आग पकड़ने वाले कपड़ों, कपड़ों को धुलने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अत्यंत ज्वलनशील साल्वेंट, जेनरेटर, बॉयलर और डीजल के स्टॉक के बीच मजदूर काम करते थे। घटना के बाद सरकार ने महज 16 मजदूरों के मरने और तीन के घायल होने की बात को ही स्वीकारा है। मजदूर परिवारों के अनुसार यह संख्या इससे कहीं अधिक है। मजदूरों का यह भी आरोप है कि पुलिस और फैक्ट्री मालिक की मिलीभगत से कई जली हुई लाशों को ठिकाने लगाया गया था।
हादसे के शिकार अधिकतर मजदूर नौजवान उम्र के लड़के-लड़कियां थे। इन मजदूरों की आमदनी से ही उनके परिवारवालों की रोजी-रोटी चलती थी। हादसे के बाद इनके परिवारवाले भारी भरकम कर्ज के बोझ तले दब गए और भुखमरी के कगार पर हैं। न्याय की आस में ये लोग पिछले लगभग आठ महीने से दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। चूंकि फैक्ट्री को अवैध तौर पर चलाया जा रहा था, इसलिए हादसे की अंतिम जिम्मेदारी पुलिस, नगर निगम और श्रम विभाग की होती है। लेकिन, अभी तक न तो दिल्ली सरकार ने इस जिम्मेदारी को लेकर फैक्ट्री मालिक पर उचित कार्रवाई की है और न मजदूर परिवारों को सम्मानजनक मुआवजा मिला है। हालत यह है कि हत्यारा कारखाना मालिक आज भी बेखौफ होकर अपना व्यापार चला रहा है। दिल्ली सरकार ने सिर्फ लोक दिखावे के लिए कुछेक मृतक मजदूर परिवारों को एक-एक लाख रुपये और घायलों को बीस-बीस हजार रुपये की सहायता दी है। सरकार का यह कदम पीड़ित मजदूरों के साथ एक भद्दे मजाक के अलावा और क्या हो सकता है? अभी तक घायल मजदूरों के परिवारवाले इलाज के लिए पचास से साठ हजार रुपये कर्ज ले चुके हैं। बावजूद इसके हादसे के शिकार मजदूर आज भी अपाहिज बने हुए हैं। मजदूरों की मांग है कि सरकार प्रभावित मजदूर परिवारों को तत्काल उचित मुआवजे दे और फैक्ट्री मालिक पर हत्या का मामला चलाए।
तुगलकाबाद का यह हादसा कोई अकेली घटना नहीं है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ऐसी घटनाएं अक्सर घटती रहती हैं। इस घटना के तीन महीने बाद ही 27 अप्रैल 2011 को पश्चिमी दिल्ली के पीरागढ़ी औद्योगिक क्षेत्र की एक जूता फैक्ट्री में भी भीषण आगजनी की घटना हुई थी। इस घटना में दस मजदूर जलकर राख हो गए। हैरतअंगेज बात यह थी कि आगजनी के समय मालिक नदारद था और फैक्ट्री गेट पर बाहर से ताला पड़ा था। नतीजतन मजदूरों को बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं मिला। इस कांड में भी मजदूर परिवारों की कोई सुनवाई नहीं हुई। तुगलकाबाद हो या फिर पीरागढ़ी, हर जगह एक ही कहानी दोहराई गई। ऐसी घटनाएं अखबारों के पन्नों में एक छोटी सी खबर मात्र बन जाती हैं। सरकारी महकमा कुछ घड़ियाली आंसू बहाता है और मजदूर न्याय की गुहार लगाते -लगाते थककर चूर बैठ जाते हैं। इस तरह मजदूरों की उपेक्षा और वंचना का सिलसिला लगातार चलता रहता है।
आज मजदूर आबादी में 90 प्रतिशत हिस्सा असंगठित व ठेका मजदूरों का है। इस बड़ी आबादी को न्यूनतम संवैधानिक अधिकार भी हासिल नहीं। कानूनी और गैरकानूनी दोनों तरीकों से इन मजदूरों को अधिकारों से वंचित रखा जाता है। इन्हीं करोड़ों मजदूरों के बेहिसाब शोषण के दम पर देश का आर्थिक विकास कायम है। पिछले 20 सालों में जिस अनुपात में देश ने तरक्की की है, उससे कई गुनी तेज रफ्तार से मजदूरों की जिंदगी बद से बदतर होती गई।
पूंजी के मालिकों ने आज पूरे देश को मुनाफा कमाने के एक खुले चारागाह में बदल दिया। पूंजीपतियों ने खुद को मजदूरों की किसी भी जिम्मेदारी को उठाने से खुद को मुक्त कर लिया है। वे समझते हैं कि जब नेताओं और अधिकारियों को खरीदा जा सकता है, तो ऐसे में उनकी कानून मानने की कोई बाध्यता नहीं और मजदूरों से घबड़ाने का तो सवाल नहीं उठता। हम समझते हैं कि इस समय की सबसे बड़ी आबादी मजदूरों की है, वही उत्पादक वर्ग भी है। इसलिए अगर उसे न्यूनतम अधिकारों से वंचित रखा जाता है, तो शेष नागरिक आबादी के संवैधानिक अधिकार भी अर्थहीन हो जाएंगे। इसलिए अब वक्त आ गया है कि पूंजी के मालिकों का मनमानापन रोका जाए और एकजुट होकर आवाज उठाई जाए। तो आइए भाइयो! तुगलकाबाद के मजदूरों की इस लड़ाई में हम भी अपनी हिस्सेदारी तय करें।

श्रमिक अधिकार मोर्चा संपर्क : 93108 18750, 98113 52320

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