सोमवार, 4 अप्रैल 2011

बेरोजगार हाथ

तकनीकी विकास की बदौलत भले ही हमारा देश आज दुनिया के विकसित देशों की बराबरी करने का दम भर रहा है, लेकिन इसने पुश्तैनी पेशों के लिए संकट भी पैदा किया है। इसने गांव और शहर दोनों जगह तबाही मचाई है। मेरठ शहर एक समय हैंड एम्ब्राडरी का एक बड़ा केन्द्र हुआ करता था, लेकिन इस क्षेत्र में मशीनों के चलन ने हजारों हाथों को बेकार कर दिया है। जिन लोगों का यह पुश्तैनी पेशा था, उनके ऊपर यह संकट ज्यादा है। जो लोग इस पेशे के अलावा दूसरे कामों में भी लगे हुए थे, वे तो किसी तरह बच गये, लेकिन जिनके परिवार बाप-दादा के जमाने से ही यही एक पेशा था, उनमें से ज्यादातर बरबाद हो गये।
हैण्ड एंब्राडरी:
आफताब के पिता जी ने जिस समय लखनऊ से अपना घर बार छोड़ा उस समय वे अभी बालिग ही थे। घर की कलह से तंग आकर करीब 30 साल पहले वे मेरठ आ गये। लखनऊ में उनका पूरा परिवार हैंड एंब्राडरी का काम करता था। इसलिए यहां आने के बाद आफताब के पिता ने हैंड एम्ब्राडरी और ‘अड्डा वर्क’ का अपना पुस्तैनी काम शुरु कर दिया। चूंकि उन्हें इस काम का अच्छा खास अनुभव था, इसलिए जल्दी ही उन्होंने मेरठ में अपना काम जमा लिया। करीब 10 साल पहले मशीनों ने उनके हाथोंं से एम्ब्राडरी का काम छीन लिया। अब वे अपने परिवार के साथ अड्डा वर्क (जिसे मोती सितारे का काम भी कहा जाता है) का काम करते हैं। सदर में कुछ रेडीमेड गार्मेंट की दुकानों से उन्हें आर्डर मिलता है। अब यही उनकी आजीविका का सहारा है। शहर बनता गया, सजता गया। पहले के मुकाबले शहर ने अपनी रफ्तार भी बढ़ाई। यह सब बहुत अच्छा रहा। लेकिन दैनन्दिन जीवन में मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल ने पारम्परिक पेशों को भी तबाह करने का काम किया। शायद इसीलिए गांधी जी हिन्दुस्तान में मशीनों के नियंत्रित इस्तेमाल के पक्षधर थे। मशीनों को लेकर उनकी यह चिन्ता आफताब के परिवार के रुप में आज भी जिन्दा है।
बिंदिया:
मेरठ में भमिया का पुल, लाला की बाजार, सराय लाल दास आदि इलाकों में बिंदिया बनाने का काम होता है। इस काम को करने वाले बेहद गरीब परिवार के लोग हैं। ये लोग कई तरह की बिंदिया बनाने का काम करते हैं। पूनम (बदला हुआ नाम) का परिवार भी यह काम करता है। इन्होंने करीब साल भर पहले इस काम को शुरु किया। इनके पास आजीविका का कोई दूसरा जरिया न होने के कारण ये लोग इस काम करने को मजबूर हैं। पूनम ने बताया कि वे अपने बच्चों के साथ बेगमपुल के एक सेठ की दुकान के लिए सादी बिंदिया, नग वाली बिंदिया और जरी वाली बिंदिया बनाने का काम करती हैं। ये सेठ से बिंदिया में लगने वाले सामान और पत्ता लाते हैं। एक ब्रुश में 144 पत्ते होते हें। एक पत्ते मे चार या पांच बिंदिया बनानी होती है। पूनम बताती हैं कि सुबह 8 बजे से शाम के 6 बजे तक काम करने पर एक पत्ता तैयार होता है।
पूनम के साथ काम करने वाले उनके बड़े बेटे ने बताया कि बाजार में एक पत्ते की कीमत इस समय पांच रुपया है। जबकि बिंदिया बनाने वाले लोगों को एक पत्ता तैयार करने के एवज में पांच पैसा भी नहीं मिलता। सेठ की ओर से इन बिंदिया बनाने वालों को समय से भुगतान नही किया जाता नतजतन अक्सर इनके सामने भुखमरी का संकट मौजूद रहता है। ऐसे में कर्ज ही इन गरीबों का एकमात्र सहारा होता है। लेकिन इनके लिए कर्ज लें तब भी बुरा न लें तब भी बुरा।
Devendra Pratap
9719867313

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